सकारात्मक सोच का विकास
बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं। सोचते हैं कि आज कष्ट पा लो कल आनन्द से रहेंगे। यह तो स्वयं के साथ सरासर अन्याय करना हुआ। वर्तमान में जीना ही सार्थक है, बुद्धिमत्तापूर्ण है। यदि वर्तमान अच्छा और सुखद है तो आने वाला कल भी अच्छा और सुखद ही रहेगा। वर्तमान हमारे भविष्य की नींव की समान है। फिर भविष्य तो वैसे भी अनिश्चितताओं का पिटारा है। वर्तमान का सदुपयोग ठीक प्रकार से करेंगे तो ही भविष्य अच्छा होगा। इसलिए अच्छा तो यही है कि हम अपनी सकारात्मक सोच को विकसित करें और स्वयं से स्वयं के संवाद को प्राथमिकता दें। आप निश्चय ही आनन्द की गंगोत्री में अवगाहन करेंगे। यही आनन्द का, यही सफल और सार्थक जीवन का सही और सुन्दर मार्ग है।
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...