निराशावादी दृष्टिकोण
चिंता ह्रदय में लगी हुई वह आग होती है, जिसकी पीड़ा को वही जान सकता है, जो उसमें झुलस रहा होता है। उसके कारण कई सुनहरे अवसर हाथ से छूट जाते हैं और खुशियों के दिन बीत जाया करते हैं। प्रकृति की व्यवस्था है कि जो जन्म देता है, वह जीवन की व्यवस्था भी कर देता है। चिंता का सबसे बड़ा कारण है हमारा निराशावादी दृष्टिकोण। व्यक्ति की सफलताओं की ओर बढ़कर भी बार-बार इसलिए असफल हो जाता है, क्योंकि उसके भीतर घर कर चुकी निराशा उसे सफलता के अंतिम चरण में लाकर वापस लौटने को मजबूर कर देती है।
Anxiety is that fire in the heart, whose pain can only be known by those who are burning in it. Because of that many golden opportunities are missed and happy days are passed. It is the law of nature that the one who gives birth also arranges life. The biggest cause of worry is our pessimistic outlook. Even moving towards the successes of a person, he fails again and again because the despair that has engulfed him within him forces him to return to the final stage of success.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...