पारस्परिक सदभावना
हम एक दूसरे पर सहज विश्वास करें तो ही पारस्परिक सदभावना से रह सकते हैं। समाज की सारी व्यवस्था एकदूसरे के विश्वास पर ही टिकी है। यह विश्वास नष्ट हो जाए तो न तो एकदूसरे पर भरोसा करेंगे और न समाज-व्यवहार स्थिर रखा जा सकेगा। प्रेम,मित्रता, सहयोग, सहायता आदि का आधार सत्य ही है। असत्य व्यवहार एवं असत्य भाषण करना, असत्य विश्वास दिलाना; अपनी मानयता के विपरीत कुछ-का-कुछ बता देना; अपनी स्थिति को छिपकर दूसरी तरह प्रकट करना; अपने इरादों को छिपाना; ये सब असत्य भाषण के अंतर्गत ही आते हैं।
Only if we trust each other easily can we live in mutual harmony. The whole system of society rests on each other's trust. If this trust is destroyed, neither will we trust each other nor will social behavior be kept stable. Truth is the basis of love, friendship, cooperation, help etc. False behavior and false speech, giving false belief; Telling something contrary to your beliefs; covertly revealing one's position; hide your intentions; All these come under false speech.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...