विश्व संस्कृति
अनेक, अगणित सेवाओं के जवाब पुरानी सोच के सहारे नहीं खोजे जा सकते। इन युग-प्रश्नों का हल खोजने के लिए विश्व दृष्टि की आवश्यकता है, क्योंकि इससे यह सच देखा जा सकता है कि पुरानी पड़ चुकी सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के खंडहरों से विश्व संस्कृति जन्म ले रही है। आज होने वाली सभी क्रांतियाँ इसके जन्म की शुभ सुचना हैं, लेकिन इस शुभ सुचना में युग-प्रश्नों की आहटें भी हैं। इन्हीं के समाधान से भावी विश्व संस्कृति का ढाँचा तैयार होगा। उसमें प्राणचेतना प्रवाहित होगी। यह सब करने के लिए नए इंसानों को गढ़ने की जरूरत है।
The answers to many, innumerable services cannot be found in old thinking. To find a solution to these epochal questions, a world vision is needed, because from this it can be seen the truth that world culture is taking birth from the ruins of old civilizations and cultures. All the revolutions happening today are auspicious news of its birth, but this auspicious news also has echoes of the questions of the era. The structure of the future world culture will be prepared by the solution of these. The vital consciousness will flow in it. To do all this, new humans need to be created.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...