बुद्धिमान व्यक्ति
बुद्धिमान व्यक्तियों का सहज स्वभाव होता है कि वे किसी की बुराई की अपेक्षा अच्छाई पर अधिक दृष्टि रहते हैं। यथासंभव बुराई को अदृष्टिगोचर ही कर जाते हैं और यदि उसके प्रकाशन की आवश्यकता भी पड़ती है तो उसकी चर्चा निंदा के रूप में नहीं, सावधानी के रूप में करते हैं। वह भी इस ढंग से कि पात्र पर उसका प्रतिक्रिया नहीं, सृजनात्मक प्रभाव पड़े। गुणों को आगे रखकर किसी के अवगुणों की चर्चा व्यक्ति को सुधार की ओर करती है। इस प्रकार सुधरा हुआ व्यक्ति सबसे पहले उस सज्जन व्यक्ति का ही भक्त बन जाता है।
It is the natural nature of intelligent people that they look more on the good than on the evil of someone. As far as possible, they make evil invisible and if there is a need for its publication, then discuss it not as a condemnation, but as a caution. That too in such a way that he does not react to the character, but has a creative effect. Keeping the qualities ahead, the discussion of one's demerits leads the person towards improvement. Thus the reformed person first becomes a devotee of that gentleman.
Intelligent Person | Arya Samaj Annapurna Indore, 9302101186 | Arya Samaj Pandits for Havan Annapurna Indore | Court Marriage Annapurna Indore | Legal Marriage Helpline Consultant Annapurna Indore | Validity of Arya Samaj Marriage Certificate Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Shaadi Annapurna Indore | Arya Samaj Pandits for Legal Marriage Annapurna Indore | Court Marriage Helpline Annapurna Indore | Marriage Booking Annapurna Indore | Vastu Correction Without Demolition Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Shadi Annapurna Indore | Arya Samaj Pandits for Pooja Annapurna Indore | Gayatri Mandir Annapurna Indore | Aarya Samaj Annapurna Indore | Vedic Pandits Helpline Annapurna Indore | All India Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Marriage Annapurna Indore | Arya Samaj Pandits for Vastu Shanti Havan Annapurna Indore | Gayatri Marriage Annapurna Indore | Marriage by Arya Samaj Annapurna Indore MP
महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...