सच की पोशाक
झूठ को सच की पोशाक पहनाना आज लोगों के लिए आसान हो गया है। अपने झूठ को छिपाने के लिए, उसे सच साबित करने के लिए तरह-तरह से उसे सजाया जाता है। उसके लिए तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं, साक्ष्य उपस्थित किए जाते हैं, लेकिन बकरी को शेर की खाल भले ही पहना दी जाए, वह बोलेगी तो 'मैं-मैं' ही। शेर की तरह उसमें दहाड़ नहीं होगी। अतः झूठ को चाहे कितना ही सजाकर प्रस्तुत किया जाए, वो सच में बदल नहीं सकता।
It has become easy for people today to dress a lie as truth. To hide his lie, he is decorated in various ways to prove it. Arguments are presented for it, evidence is presented, but even if the goat is given a lion's skin, it will say 'I-I' only. It will not roar like a lion. Therefore, no matter how well a lie is presented, it cannot change into truth.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...