शिष्टाचार और सद्व्यवहार
जिस घर का जैसा अच्छा या बुरा वातावरण होता है, उसके बालक अधिकांश उसी में ढल जाते हैं। इसलिए यदि हम स्वयं शिष्टाचार और सद्व्यवहार के नियमों का पालन करने लगेगें तो बालकों पर उसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता। अशिष्ट लोगों के संसर्ग और कुसंगति से बालकों को अलग रखने की सावधानी भी रखी जाए। हमको यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए की बालकों की मनोभूमि में जैसा बीज आरम्भ में बो दिया जाता हैं, वैसा ही फल बड़े होने पर उत्पन्न होता है।
Whatever the good or bad environment of the house, most of its children get accustomed to it. Therefore, if we ourselves start following the rules of etiquette and good behavior, then it cannot remain without its effect on the children. Care should also be taken to keep the children away from the contact and mischief of rude people. We should understand very well that the kind of seed that is sown in the mind of children in the beginning, the same fruit is produced when they grow up.
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सत्यार्थप्रकाश मार्गदर्शक यदि किसी को मोक्ष के विषय में जानना हो, तो सत्यार्थप्रकाश का नवम समुल्लास ध्यान से पढना चाहिए। इस सम्बन्ध में बताया गया है कि योग साधना से ही मोक्ष सम्भव है। चित्तवृत्तियों का निरोध करने पर ही आत्मा के वास्तविक स्वरूप का पता चलता है। मोक्ष प्राप्ति को सबसे बड़ा पुरुषार्थ...
महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...