सत्पात्र शिष्य
जिस तरह से शिष्य ढूँढता है सद्गुरु को, ठीक उसी भाँति सद्गुरु भी खोजते हैं अपने सत्पात्र शिष्य को। इस प्रक्रिया का चरम तब होता है, जब शिष्य अपने अधूरेपन को, अपने अनगढ़ जीवन को सद्गुरु की पूर्णता शिष्य में उँडेलते हैं। यही मधुर पल होते हैं गुरु पूर्णिमा के महोत्सव के जिन्हें शिष्य एवं सद्गुरु की चेतना समन्वित रूप से मनाती है। हालाँकि इसके पहले शिष्य के जीवन में कठिनाई के कई दौर आते हैं।
Just as the disciple looks for the master, in the same way, the master also searches for his deserving disciple. The culmination of this process is when the disciple pours out his incompleteness, his unbridled life into the perfect disciple of the Sadguru. These are the sweet moments of the festival of Guru Purnima, which are celebrated in concert by the consciousness of the disciple and the master. However, before this there are many periods of difficulty in the life of the disciple.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...