आत्मा की अभिव्यक्ति
प्रेम आत्मा की अभिव्यक्ति है। इसे रत्नाकर सिंधु की तरह समझा जा सकता है। जिस तरह गंगा, यमुना, कावेरी, ताप्ती, गोदावरी आदि सरिताएँ स्थल खंडों में जब तक इधर-उधर भटकती हैं, तब तक उन्हें सरिताओं के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जाता है, पर जब ये सरिता प्रवाह सिंधु में समा जाते हैं, तब उनकी समूची शक्ति-सामर्थ्य भी केंद्रीभूत हो जाती है। अब उनका अस्तित्व रत्नाकर जैसा विशाल नहीं, रत्नों का भंडार हो जाता है। मनुष्य के गुण भी इन नदियों की तरह और इन सद्गुणों का पुंजीभूत रूप है प्रेम।
Love is an expression of the soul. It can be understood like Ratnakar Sindhu. Just as rivers like Ganga, Yamuna, Kaveri, Tapti, Godavari etc., as long as they wander here and there in the land blocks, they are called nothing but rivers, but when these streams merge into the Indus, then their The whole power-strength also becomes centralized. Now his existence is not as huge as that of Ratnakar, but becomes a storehouse of gems. Human qualities are also like these rivers and the capitalized form of these virtues is love.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...