तापमान
वायु प्रदुषण के साथ विषैली साँस से आरोग्य नष्ट होने, रुग्णता का दौर उभरने, महामारियाँ फैलने के अतिरिक्त एक संकट तापमान बढ़ने का भी है। संतुलित तापमान से मौसम का नियंत्रित क्रम यथावात् बना रहता है, किंतु यदि गरमी की मात्रा बढे तो उसकी भयानक प्रतिक्रिया मौसम गड़बड़ाने के रूप से प्रकट होती है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि के कारण दुर्भिक्ष पड़ते हैं। जमी बरफ पिघलती है और समुद्र की सतह ऊँची उठने लगती है, फलतः अग्नियुग, हिमयुग जैसे प्रकृति-प्रकोप उभरते हैं, जिनके कारण भूमि-परिभ्रमण लड़खड़ाती है। भूकंप आते हैं और थल की जगह जल धमकने जैसे व्यतिक्रम खड़े होते हैं।
Along with air pollution, there is also a danger of increasing temperature apart from destroying health due to toxic breath, emergence of disease, spread of epidemics. Balanced temperature keeps the controlled order of the weather as it is, but if the amount of heat increases, then its terrible reaction appears in the form of disturbing the weather. Famine occurs due to excessive rains and no rains. The frozen ice melts and the surface of the sea begins to rise, as a result of which nature-outbreaks emerge like fire age, ice age, due to which the land-circulation falters. Earthquakes occur and instead of land there are disturbances like threatening water.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...