प्रत्यक्ष की उत्पत्ति परोक्ष में
मन की, आँखों की बनावट ऐसी है, जिसमें बाहर की वस्तुएँ ही दीखती हैं। बाहर से भी सिकुड़कर वे सामने ही केंद्रित रह जाती हैं। जो चीजें सामने नहीं, वे ध्यान में ही नहीं रहतीं। फोड़ा उठता है, तो दीखता है। अपच में क्या हानि हो सकती है, यह समझ में नहीं आता; क्योंकि पेट का भारीपन प्रत्यक्ष नहीं है। सच बात यह है कि प्रत्यक्ष की उत्पत्ति परोक्ष में होती है। जो भीतर है, वही उबालकर बाहर आता है और जब उस उफान का स्वरूप सामने आता है, तब प्रतीत होता है कि समय से पहले ध्यान देने की बात याद ही नहीं रही।
The structure of the mind, the eyes is such, in which only the outside things are visible. By shrinking from outside also, they remain focused in front. Things which are not in front, they do not remain in meditation. If the boil rises, then it is visible. What can be the harm in indigestion, it is not understood; Because the heaviness of the stomach is not visible. The truth is that the direct has its origin in the indirect. That which is inside comes out after boiling and when the form of that boom comes to the fore, then it seems that there is no memory of paying attention ahead of time.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...