हीनता-बोध
स्वामी विवेकानंद ने लोगों हीनभावना दूर करने के लिए शिक्षा दी है। उनका कहना था - हम स्वयं को शरीर नहीं, आत्मा समझें ऐसी आत्मा, जो शक्तिशाली परमात्मा का अंश है। इससे हीनता-बोध समाप्त होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। इसलिए कभी भी ऐसी सोच न रखें कि मैं कमजोर, पापी या दुःखी हूँ। संयम-अनुशासन रखें - खुद पर नियंत्रण रखना संयम कहलाता है। संयमी व्यक्ति सारे व्यवधानों के बीच भी अपने कार्यों को सहजता से करते हुए आगे बढ़ता रहता है। सेवा की भावना, शांति, कर्मठता आदि गुण, संयम से आते हैं।
Swami Vivekananda has given education to remove the inferiority complex of the people. He said that we should not consider ourselves as a body, but a soul, such a soul, which is a part of the mighty God. This eliminates inferiority complex and builds self-confidence. So never think that I am weak, sinful or sad. Have restraint-discipline - Controlling yourself is called restraint. A self-restrained person keeps on moving forward by doing his work smoothly even in the midst of all the obstacles. The spirit of service, peace, hard work, etc., come from restraint.
महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...