सत्यभाषण
स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुसार जो ईश्वर व किसी दूसरे पदार्थ के गुण, ज्ञान, कथन, श्रवण और सत्य भाषण करना है वह स्तुति कहाती है। यथार्थ में जैसा ईश्वर है गुण, कर्म, स्वभाव और स्वरूपतः उसे वैसा ही जानना, सुनना-कहना और सुनना-सुनाना तथा सत्यभाषण करना ही स्तुति कहाती है। महर्षि के अनुसार अपने पूर्ण पुरुषार्थ के उपरान्त उत्तम कर्मों की सिद्धि के लिए परमेश्वर व किसी सामर्थ्य वाले मनुष्य के सहाय लेने को प्रार्थना कहते हैं। महर्षि के अनुसार जो ज्ञानादि गुणवाले का यथायोग्य सत्कार करना है उसको पूजा कहते हैं।
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...