अचेतनताजनित आलस्य
हम समय के एक अनेक अजस्त्र अनुदानों से चूकते रहे। यदि इसका कारण खोजें तो बहुत कुछ अंशों में अचेतनताजनित आलस्य पर इसकी जिम्मेदारी थोपी जा सकती है। इसके अलावा यदि कोई कारण बचता है तो वह है - हमारी अस्त-व्यस्त जीवनशैल एवं उससे जुडी बहुत सारी कुटेवें। इन्हीं सबके चक्रव्यूह में फँसकर जिंदगी के अगणित अवसरों को खोते रहते हैं। अपनी बेहोश मानसिकता के कारण पहले तो हमें इसे गँवाने का ध्यान ही नहीं आता और यदि किसी के चेताने पर थोड़ा-बहुत ख्याल आया भी तो तब कोई फायदा नहीं होता; क्योंकि उस समय तक पर्याप्त देर हो चुकी होती है।
We kept on missing out on one of the many weapons grants of the time. If the reason for this is discovered, then in some degree the responsibility can be imposed on unconscious laziness. Apart from this, if there is any reason left, it is our chaotic lifestyle and many huts associated with it. By getting caught in the maze of all these, they keep missing countless opportunities of life. Because of our unconscious mentality, at first we do not even notice to lose it, and even if a little thought comes on someone's warning, then it is of no use; Because by that time it is too late.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...