बौद्धिक क्षमता
मानव से जहाँ एक ओर उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह मर्यादाओं का परिपालन करे तो वहीँ अनेकों ऐसे कृकत्य हैं। जिनके विषय में उससे यह अपेक्षा है कि व उनसे दूर रहे। उनको अपनाने पर कानून से लेकर कर्म व्यवस्था, सभी उसके ऊपर अपना शिकंजा कसते दिखाई पड़ते हैं। व्यक्ति शारीरक रूप में समर्थ हो, बलवान हो या बौद्धिक क्षमता का धनी हो अथवा आर्थिक रूप से संपन्न हो-इन सबके आधार पर सुख-सुविधा की प्राप्ति संभव है। सामाजिक रूप से इनका मूल्य एक निश्चित सीमा तक ही है - उसके बाद इनका भी बहुत महत्व नहीं रह जाता है।
While on the one hand it is expected of a human being that he should follow the limits, there are many such acts. About whom he is expected to stay away from them. On adopting them, from law to karma system, everyone seems to be tightening their grip on him. Whether a person is physically capable, strong or intellectual ability or financially prosperous - on the basis of all this, it is possible to get happiness and convenience. Socially their value is only up to a certain extent - after that they are of little importance.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...