परोपकार क्या है ?
ध्यान से देखें तो इसकी तीन स्थितियाँ - परामर्श, कार्यसिद्धि में सहयोग और आर्थिक सहायता। अपनी योग्यता, क्षमता और अनुभव के आधार पर लोगों को सन्मार्ग पर चलने का परामर्श देना चाहिए। उचित समय पर हितकारी परमार्थ जीवन में प्रकाशस्तंभ का कार्य करता है। इसी प्रकार जहाँ जब भी संभव हो दूसरों को हर प्रकार से कार्यसिद्धि में सहयोग देने व आर्थिक सहायता देने से पीछे नहीं हटना चाहिए। सच्चा परोपकारी सदा प्रसन्नचित रहता है और आंतरिक हर्ष की अनुभूति करता है; दिव्य प्रकाश का अनुभव करता है। व्यक्ति जितना परोपकारी बनता है; उतना ही ईश्वर की समीपता प्राप्त करता है। सत्पुरुष वे हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की भलाई करते हैं। परोपकार के लिए संकुचित विचारों को छोड़ने की आवश्यकता होती है।
If you look carefully, its three conditions - consultation, cooperation in achievement and financial assistance. On the basis of their ability, ability and experience, people should be advised to walk on the right path. At the right time, the benevolent charity acts as a beacon of light in life. Similarly, whenever possible, one should not shy away from helping others in every way and giving financial assistance. A true benefactor is always happy and feels inner joy; experiences divine light. The more charitable the person becomes; The more one attains the nearness of God. Good men are those who do good to others without any selfishness. Charity requires letting go of narrow thoughts.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...