प्रलोभन का मोहक आकर्षण
प्रलोभन का मोहक आकर्षण नाना रूपों में साधक को ठगने एवं पथभ्रष्ट करने के लिए आता है। जीवन में आने वाले प्रलोभनों की मायावी सृष्टि इतनी मनमोहक एवं लुभावनी होती है कि क्षण भर के लिए व्यक्ति की विवेक-बुद्धि पंगु हो जाती है और इनके पुष्पित एवं मादक प्रहार से चित्त विक्षिप्त हो उठता है और व्यक्ति अदूरदर्शी निर्णय ले बैठता है। सारी नैतिकता, व्रत-संकल्प, नेक इरादे, पवन भाव आदि क्षणभंगुर सुख के सामने घुटने टेक देते हैं। अंततः इससे उत्पन्न होने वाली हानि, कष्ट, पाप, संताप, अपमान एवं अप्रतिष्ठा से व्यक्ति दग्ध हो उठता है।
The seductive attraction of temptation comes in various forms to deceive and mislead the seeker. The elusive creation of temptations that come in life is so alluring and alluring that for a moment one's conscience becomes paralyzed and the mind becomes paralyzed by their floral and intoxicating blows and the person takes short-sighted decisions. All morality, vows, virtuous intentions, wind feelings, etc., bow down in front of fleeting pleasures. Ultimately, the person becomes enraged by the loss, suffering, sin, anguish, humiliation and disrepute arising out of it.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...