आस्तिक व नास्तिक
इस समूची कायनात का मालिक कौन है? क्या सचमुच कोई भगवान है ? क्या सचमुच इस संसार में ईश्वर की सत्ता है अथवा यह कोरी कल्पना मात्र है ? यदि ईश्वर है तो वह कौन है, कहाँ है, कैसा है ? और यदि नहीं है तो इस जगत का नियंता कौन है ? कौन है इस सृष्टि का सृजनकर्ता, पालक व संचालक ? ऐसे ही अनेक प्रश्न युगों-युगों से अध्यात्मपिपासुओं, साधकों से लेकर सामान्य मनुष्यों के मन में सदा जन्म लेते रहे हैं एवं आस्तिक व नास्तिक, दोनों को ही अपने-अपने तरीकों से इन प्रश्नों के उत्तर देते रहें हैं।
Who is the master of this entire universe? Is there really a god? Does God really exist in this world or is it just a fantasy? If there is a God then who is he, where is he, how is he? And if not, then who is the ruler of this world? Who is the creator, foster and operator of this universe? Many such questions have always been born in the minds of spiritual seekers, seekers and ordinary human beings since ages and have been answering these questions to both theists and the atheists in their own ways.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...