व्रत-संकल्प
हमारे पौराणिक संदर्भों में पर्व-परंपरा के साथ व्रत करने का भी विधान रहा है। व्रत का अर्थ यही - व्यक्ति का संकल्पित होना, नियमों का निर्धारण व उनका पालन करना। मानव जीवन में उत्तरोत्तर सुधार लाने के लिए संकल्प लेने से जो परिणाम प्राप्त होते हैं, वही पुण्य के रूप में हमारे जीवन में संचित होते हैं। व्रत एक तरह का तप भी है; क्योंकि व्रत-संकल्प पूरा करना सहज नहीं होता, इसके लिए शारीरिक संताप भी सहन करना पड़ता है।
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...