विचारप्रणाली
विज्ञान और धर्म दोनों के अविभाज्य अंग है। ये तार्किक एवं आध्यात्मिक दो ऐसे सूत्र हैं, जो मानवीय स्वाभाव में अविच्छित रूप रूप से जुड़े हैं। प्रकृतिगत इस सत्य को नजरअंदाज कर देने के कारण एक दौर ऐसा भी आया जब तार्किकता के अभाव में धर्म अंधविश्वासों-अंधमान्यताओं से भर गया और भावशून्य विचारप्रणाली से विध्वंशक नाभिकीय आयुधों का बेशुमार निर्माण होने लगा। मानवीय इतिहास के विभिन्न युगों में जब भी ऐसी स्थिति आई है, परिणति भयावह ही हुई है।
Science and religion are inseparable parts of both. These two threads, logical and spiritual, are inextricably linked in human nature. Due to ignoring this natural truth, a time also came when due to lack of rationality, religion was filled with superstitions and superstitions and due to emotionless thinking, destructive nuclear weapons started being manufactured innumerable. Whenever such a situation has occurred in different eras of human history, the result has been horrifying.
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महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...