महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी। दयानन्द से गुरु को दक्षिणा के रूप में कोई भौतिक वस्तु अपेक्षित न थी। यह गुरु तो अपने शिष्य से कुछ और ही चाहता था। इस पर दयानन्द ने निवेदन किया- गुरुदेव! यह सेवक अपने मन सहित अपने तन को आपके चरणों में अर्पण करता है। आप जो भी आदेश देंगे, उसे मैं आजीवन निभाऊँगा, कृपया आज्ञा दें। गुरु विरजानन्द ने अपने प्रिय शिष्य से कहा- वत्स, भारत के दीन-हीन जनों का उद्धार करो। कुरीतियों का निवारण करो। आर्ष शिक्षा पद्धति का उद्धार करके वैदिक ग्रन्थों के पठन-पाठन में लोगों को प्रेरित करो। अन्य किसी सांसारिक वस्तु की हमें चाह नहीं है। शिष्य दयानन्द ने गुरु के वचनों को सुनकर स्वीकार किया और कहा कि महाराज आपका यह प्रिय शिष्य इन आज्ञाओं का जी जान से पालन करेगा। यह मेरी प्रतिज्ञा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अपने गुरु को दिए गए वचनों को पूरा करने में ही स्वामी दयानन्द ने अपना जीवन लगाया।
The great yogi and thinker Maharishi Dayanand Saraswati took the teachings of Ashtadhyayi, Mahabhasya and Vedanta Sutras etc. from Mahatma Virjanand for two and a half years. When it was time to leave after completing his education, Dayanand placed some cloves in front of the Guru as Gurudakshina and touched his feet and asked for permission to leave the country.
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सत्यार्थप्रकाश मार्गदर्शक यदि किसी को मोक्ष के विषय में जानना हो, तो सत्यार्थप्रकाश का नवम समुल्लास ध्यान से पढना चाहिए। इस सम्बन्ध में बताया गया है कि योग साधना से ही मोक्ष सम्भव है। चित्तवृत्तियों का निरोध करने पर ही आत्मा के वास्तविक स्वरूप का पता चलता है। मोक्ष प्राप्ति को सबसे बड़ा पुरुषार्थ...
महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...