स्वार्थ साधना
एकता को अनेकता में बिखेर कर हमने पाया कम, खोया बहुत। प्राचीनकाल में एक ईश्वर था और एक धर्म। पृथकवादी निहित स्वार्थों ने अपना लाभ इसमें देखा कि उनका एक विशेष सम्प्रदाय बने, उसके अनुयायी अन्यान्यों से पृथक होकर एक विशेष वर्ग बनायें और दूसरों से लड़ें। उनका व्यक्तिगत वर्चस्व इसी में बनता था। प्रतिभाशाली अग्रगामी जन-समाज को अपने पीछे घसीट ले चलने में सदा से ही बहुत कुछ सफल होते रहे है। अस्तु, पृथकतावाद पनपता गया। अनेक सम्प्रदाय, अनेक देवता, अनेक ग्रन्थ, अनेक विधि-निषेध गढे गये और बिलगाव की जड़ें मजबूत होती चली गई। इससे केवल पुरोहित वर्ग का स्वार्थ सधा। बाकी सब लोग भ्रान्तियों के जंजाल में फँसकर अपना समय, धन और विवेक गँवाकर घाटे में ही रहते रहे।
By disintegrating unity into diversity, we gained less and lost more. In ancient times, there was one God and one religion. Separatist vested interests saw their benefit in forming a special sect, its followers separating from others forming a special class and fighting with others. This was their personal dominance. Talented pioneers have always been quite successful in dragging the masses behind them. So, separatism flourished. Many sects, many gods, many scriptures, many rules and regulations were created and the roots of separation kept getting stronger. This only served the selfish interests of the priestly class. All the other people remained in loss by getting entangled in the web of misconceptions and wasting their time, money and wisdom.
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सत्यार्थप्रकाश मार्गदर्शक यदि किसी को मोक्ष के विषय में जानना हो, तो सत्यार्थप्रकाश का नवम समुल्लास ध्यान से पढना चाहिए। इस सम्बन्ध में बताया गया है कि योग साधना से ही मोक्ष सम्भव है। चित्तवृत्तियों का निरोध करने पर ही आत्मा के वास्तविक स्वरूप का पता चलता है। मोक्ष प्राप्ति को सबसे बड़ा पुरुषार्थ...
महान योगी और चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने महात्मा विरजानन्द से ढाई वर्ष तक अष्टाध्यायी, महाभाष्य और वेदान्त सूत्र आदि की शिक्षा ग्रहण की। जब शिक्षा पूर्ण करने के बाद विदा की बेला आई तो दयानन्द ने कुछ लौंग गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु के सम्मुख रखकर चरण स्पर्श करते हुए देशाटन की आज्ञा मांगी।...
सकारात्मक सोच का विकास बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता नहीं मानी जा सकती और ना ही उनसे आनन्द मिलता है। अपितु दैनिक जीवन की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं।...